चाचाजी उवाच संख्या १
गीता में कहा है "द्वंद्वे विमुक्ता" अर्थात अपने आपको हर तरह के द्वंद्वों (जैसे ग्रीष्म - शरद आदि ) से अलग रखो और उनसे प्रभावित मत हो। हर परिस्थिति का आनंद लो। इसीलिए मैं तेज़ी मंदी से प्रभावित नहीं होता और दोनों से ही मुनाफा कमाता हूँ । तेज़ी में मैं शेयर खरीद कर बाद में बेचता हूँ और मंदी में मैं शेयर पहले बेचता हूँ और फिर बाद मैं खरीद कर मुनाफा कमाता हूँ।
चाचाजी उवाच संख्या २
गीता मैं कृष्ण ने तत्व ज्ञान बताया है, " संसार की हर विशेषता मैं मैं ही हूँ । जैसे सोने के हर आभूषण में, हर तरह के डिजाईन के हार या अंगूठी मैं तत्व तो सोना ही है, ठीक उसी प्रकार हर तरह के शेयर मैं, चाहे वह रिलायंस हो या स्टेट बैंक , के अन्दर तत्व तो पैसा ही है। जैसे एक आभूषण को गला कर सोना प्राप्त किया जा सकता है और उससे फिर दूसरा आभूषण बनाया जा सकता है उसी तरह एक शेयर बेच कर जो पैसा प्राप्त होता है उससे हम फिर दूसरा शेयर खरीद सकते हैं । इसलिए वत्स अपना ध्यान तत्व (पैसे) पर लगाओ और तत्व (पूँजी) से तत्व (मुनाफा) पैदा करो।
चाचाजी उवाच संख्या ३
"कर्मण्ये वाधिका ........... " मतलब अपना कर्म किए जाओ और फल की चिंता मत करो । यदि तुम्हारा ध्यान फल की तरफ़ गया तो तुम्हारा कर्म ग़लत हो सकता है।" शेयर बाज़ार मैं भी तुम अपना कर्म करो यानी जब बाज़ार अच्छा लगे तो शेयर खरीदो और जब मंदा लगे तो उसे बेच दो। फायदा और घाटा मत देखो। ऐसा करने से तुम खरीद बेच करने का सही निर्णय कर पाओगे और फल यानी मुनाफा अपने आप आएगा।
चाचाजी उवाच संख्या ४
"नैनं छिन्दन्ति शास्त्रानी ............." यानी आत्मा को न तो जलाया जा सकता है न ही किसी शस्त्र से इसे नष्ट किया जा सकता है। आत्मा बारम्बार एक शरीर को त्याग कर दूसरे शरीर मैं प्रवेश करती है । इस बाज़ार मैं भी जो पैसा है वो कभी नष्ट नहीं होता सिर्फ़ एक निवेशक से दूसरे के अकाउंट मैं चला जाता है। इसका कुछ हिस्सा दलालों के खाते मैं भी जाता है मगर यह कभी नष्ट नहीं होता । यही शाश्वत सत्य है।
चाचाजी उवाच संख्या ५
"कुछ लोग कर्म योग से और कुछ अन्य ज्ञान योग से मोक्ष प्राप्त करते हैं। " इस बाज़ार मैं भी बहुत लोग कर्म अर्थात डेली ट्रेड करके पैसा कमाते हैं और कुछ अन्य लोग अपने ज्ञान को टीवी पर परोस कर अपनी आजीविका चलाते हैं। मगर दोनों का ही उद्देश्य पैसा कमाना है। दोनों ही अपना ध्यान बाज़ार पर केंद्रित कर के कर्म और ज्ञान योग द्वारा पैसा कमाने की सफल या असफल कोशिश करते हैं।
चाचाजी उवाच संख्या ६,
"यदा यदा ही धर्मश्य्ह गलानिर भवतु .......... " अर्थात जब जब संसार में धर्म नहीं रहता और अधर्म का राज्य होता है तो कृष्ण आ कर धर्म की स्थापना करते हैं। ठीक इसी तरह जब जब बाज़ार में तेज़ी नहीं रहती और मंदी का घन घोर अंधकार हो जाता है तो हर्षद मेहता या केतन पारीख जैसा कोई बिग बुल बाज़ार में प्रवेश करके मंदी ख़त्म करके तेज़ी की पुनः स्थापना करता है और भक्तजनों (निवेशकों ) को प्रसन्न करता है।
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